राजधानी में दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या ने शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिक्षा मॉडल की तारीफ के बावजूद, हकीकत यह है कि करीब 799 सरकारी स्कूल आज भी इन बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं। बच्चों को न केवल पढ़ाई के दौरान गर्मी और प्यास का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि यह उनकी सेहत और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर भी असर डाल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या का समाधान नहीं होता, तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद करना मुश्किल है।
शिक्षा विभाग ने तलब की रिपोर्ट
इस मामले को गंभीर मानते हुए शिक्षा विभाग ने रिपोर्ट मांगी है। विभाग ने साफ कहा है कि दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या की वजहों का पता लगाया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। शिक्षा विभाग ने जिला स्तर के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे पूरी जानकारी दें कि किन स्कूलों में पानी या बिजली की दिक्कत सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट आने के बाद सरकार ठोस कदम उठाने की तैयारी में है। लंबे समय से अनदेखी की जा रही दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या अब सुर्खियों में है और सरकार पर दबाव भी बढ़ गया है।
छात्रों की पढ़ाई पर असर
बिजली और पानी की कमी का सबसे ज्यादा असर छात्रों पर पड़ता है। गर्मी के दिनों में बिजली न होने से पंखे और लाइट बंद हो जाते हैं। बच्चे पसीने से तर होकर कक्षाओं में बैठते हैं। वहीं, पानी न होने से पीने और साफ-सफाई दोनों की समस्या बढ़ जाती है। इससे पढ़ाई पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है। कई छात्र शिकायत कर चुके हैं कि दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित कर रही है। अभिभावक भी मानते हैं कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो उन्हें मजबूरी में बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पड़ेगा।
शिक्षक और स्टाफ की दिक्कतें
सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षक और स्टाफ भी दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या से परेशान हैं। बिजली न होने से पढ़ाई के दौरान तकनीकी साधनों का उपयोग रुक जाता है। स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल शिक्षा पर सीधा असर पड़ता है। वहीं पानी की कमी के कारण साफ-सफाई नहीं हो पाती, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बढ़ जाते हैं। शिक्षकों का कहना है कि अगर सरकार वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना चाहती है, तो सबसे पहले दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या को खत्म करना होगा।
अभिभावकों की चिंता और विरोध
अभिभावकों में इस खबर के बाद काफी आक्रोश है। उनका कहना है कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में बच्चों को आज भी पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखना शर्मनाक है। अभिभावक संघों ने सरकार से तुरंत समाधान की मांग की है। उनका सवाल है कि जब सरकार अपने शिक्षा मॉडल की तारीफ करती है, तो फिर जमीनी स्तर पर दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या क्यों बनी हुई है। कुछ अभिभावकों का मानना है कि बजट का सही इस्तेमाल न होने के कारण यह स्थिति बनी है।
सरकार की चुनौतियाँ और जिम्मेदारी
सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है कि दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या का स्थायी समाधान किया जाए। करीब 799 स्कूलों में सुधार लाना आसान नहीं होगा, क्योंकि इसके लिए बजट, समय और योजनाबद्ध कार्यवाही की जरूरत होगी। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों में नहीं बल्कि वास्तविकता में भी लागू हो। यदि सरकार इस समस्या का हल नहीं करती है, तो यह उसके पूरे शिक्षा मॉडल को कटघरे में खड़ा कर देगा। दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या को खत्म करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
समाधान और आगे की राह
शिक्षा विभाग ने संकेत दिए हैं कि इस मुद्दे पर जल्द ही कार्रवाई होगी। लोक निर्माण विभाग और जल बोर्ड को इस काम में शामिल किया जा रहा है। कुछ स्कूलों में सोलर पैनल और वाटर फिल्टर लगाने की योजना भी बनाई जा रही है। साथ ही निगरानी टीम को जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे समय-समय पर स्कूलों की स्थिति की जांच करें। यदि यह योजना सफल रहती है तो जल्द ही दिल्ली सरकारी स्कूलों में पानी-बिजली की समस्या का हल निकल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को सुरक्षित और सुविधाजनक माहौल मिलेगा तो शिक्षा की गुणवत्ता अपने आप बेहतर होगी।










